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हमारी विरासत

सुगन्धित ही नहीं स्‍वास्‍थ्‍यवर्धक भी है गुलाब
गुलाब को फूलों का राजा भी कहा जाता है। मूलरूप से सीरिया व ईरान का निवासी होने के बावजूद आजकल लगभग सम्पूर्ण विश्‍व में इसका उत्पादन होता है। इजराइल में बहुत अधिक गुलाब पैदा होता है। तेल अबीब से एमस्टर्डम के लिए-रोज फलाइट- नाम से एक पुष्पवाहक वायुयान प्रतिदिन उड़ान भरता है।बुल्गारिया में मरिट्जा नदी की मुख्य धारा टुण्डजा के आर-पार दो पर्वत श्रृखलाओं के मध्य एक संकरी घाटी है, जिसे गुलाब पुष्पों की घाटी के नाम से जाना जाता है। भारत में चण्डीगढ़ में देश की  सबसे बड़ी गुलाब वाटिका है,जहाँ लगभग 1600 प्रकार के गुलाब पुष्प  सुगंध बिखेरते रहते हैं।
आधुनिक वैज्ञानिकों ने इसकी अनेक संकर प्रजातियों का विकास किया है। जिनमें फर्स्ट लव, सी-पर्ल, हैप्पीनैस, सुपर स्टार,फर्स्ट प्राइज,क्वीन एलिजाबेथ आदि प्रमुख हैं। रूसी वैज्ञानिकों ने तो इसकी एक ऐसी प्रजाति भी विकसित की है जो नींबू  के आकार के फल भी देती है।
राजा-महाराजाओं का प्रिय पुष्प गुलाब  सुन्दर ही नहीं पौष्टिक और रोगनाशक भी है। आयुर्वेद के अनुसार यह तिक्त,कटु,शीत,रुक्ष, मेधावर्धक,रोचक, मृदुरेचक, रक्तविकार नाशक एवम् कांतिवर्धक है। जबकि यूनानी चिकित्सकों के अनुसार यह रक्तवर्धक, मृदुरेचक, सिरदर्द,दाँत दर्द,काली खाँसी, नेत्र विकार व जोड़ों के दर्द में लाभदायक है। यदि रासायनिक दृष्टि से देखें तो गुलाब के पुष्पों में ओलियम रोज़ी नामक एक तेल,टैनिक एसिड, तथा गैलिक एसिड पाए जाते हैं। क्योंकि इसमें बहुत अधिक मात्रा में विटामिन पाए जाते हैं, अतः रूस में तो इसे विटामिन पूर्ण पुष्प  कहा जाता है।
अष्टांग हृदय के चिकित्सा सूत्र (13/4) के अनुसार गुलाब मधुर,तिक्त एवं कषाय है।अधिक पसीना आने को प्रकुपित पित्त विकारों के अन्तर्गत माना गया है। वसवराज ने भी पित्तजन्य 24 व्याधियों में इसकी गणना की है। शीतवीर्य होने के कारण गुलाब का सेवन पित्त विकारों में किया जाता है। जिस व्यक्ति को पसीना अधिक आता हो उसे गुलाब पुष्प  का सेवन कराना लाभदायक होता है। यूनानी चिकित्सक जालीनूस के अनुसार क्षयरोग में इसके अधिक से अधिक पुष्प  रोज खाने से ज्वर,खाँसी तथा कमजोरी दूर होती है।गर्मियों में गुलाब के पुष्प, खस तथा मोथे के काढ़े से नहाना ग्रीष्मकालीन विकारों से मुक्ति दिलाता है।
गुलकंद और अर्क गुलाब इसके सबसे महत्वपूर्ण उत्पादों में से  हैं। गुलकंद  कई तरीकों से बनाया जाता है। साधारणतः गुलाब की पंखुड़ियों को चीनी या मिसरी में मिलाकर कांच के पात्र में दो सप्ताह तक धूप में रखा जाता है। इस बीच 4-5 बार इन चीजों को हिलाया और मसला जाता है। चीनी या मिसरी के स्थान पर शहद भी मिलाया जा सकता है। गुलकंद मुंह के छालों एवं कब्ज आदि में फायदेमंद है। परन्तु ऐसे लोगों को जिनका मूत्राशय कमजोर है, गुलकंद लेने से पेशाब में पीलापन आ सकता है या फिर मूत्राशय/ पेट में भारीपन रह सकता है। 

गुलाब के ताजे सुगंधित फूलों में चार गुना पानी मिलाकर अर्क खींचने से गुलाबजल प्राप्त होता है। 6 औंस गुलाब जल में 1 ड्राम गंधक मिलाकर खूब घोटने पर जब दूध सा तैयार हो जाए तो 4 ड्राम ग्लीसरीन डालकर अच्छी तरह मिला लेने से रोज मिल्क तैयार किया जाता है। यह चेहरे का सौंदर्य बढ़ाने के लिए प्रयुक्‍त होता है। इसके नित्य व्यवहार से चेहरे की झाँई,मुहांसे, खुश्की तथा खुजली आदि दूर होते हैं। इसके व्यवहार से चेहरा कोमल तथा खिला-खिला रहता है।

गुलाब की कोल्ड क्रीम बनाने के लिए 20 भाग गुलाब जल में 0.1 भाग इत्र गुलाब, 18 भाग सफेद मोम, 1 भाग सुहागा तथा 61 भाग रोगन बादाम मिलाया जाता है। यह भी चेहरे पर लगाने के लिए श्रेष्ठ है। इसी प्रकार गुलाब जल एवम् दही में बेसन, हल्दी तथा संतरे के पिसे हुए छिल्के मिलाकर अच्छी तरह फेंट लें। इस पेस्ट को चेहरे पर लगा कर सूखने दें । उसके बाद धो लें। इसके प्रयोग से दो मास में ही समस्त दाग-धब्बे दूर होकर चेहरे की काँति बढ़ जाती है।

गुलाब का प्रयोग विभिन्न नेत्र रोगों में भी किया जाता है। 250 मि.ली. गुलाबजल में 3 ग्राम हल्दी तथा 20 ग्राम फिटकरी को एक उबाल आने तक उबाल कर छान लें। फिर उसमें 3 ग्राम भीमसेनी कपूर और 1 ग्राम पिपरमेंट मिलाकर अच्छी तरह छानकर शीशी में रख लें। वैद्य श्रीकृष्णचन्द्र गुप्त द्वारा कथित -नेत्र प्रभाकर- नाम का यह योग आँखों की लाली,दुखना, जाला, फूली आदि को दूर करके नेत्र ज्योति को बढ़ाता है।
इसी प्रकार गुलाबजल में धनिया, इलायची और गुलाब की पंखुड़ियाँ मिला कर पीने से अम्लपित्त-एसिडिटी में लाभ होता है। गुलाब के सूखे फूलों को बारीक पीस कर फोड़ों पर अवधूलन करने से वे शीघ्र भर जाते हैं।
असंयमित आहार-विहार से पनपते हैं कई रोग
 हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि जिस प्रकार नगर का स्वामी नगर की रक्षा को और रथ का स्वामी रथ की रक्षा को हमेशा सावधान रहता है, उसी प्रकार बुध्दिमान व्यक्ति को शरीर की रक्षा को सदैव तत्पर रहना चाहिए।
इसी उद्देश्‍य से हमारे प्राचीन आचार्यों ने स्वास्थ्य रक्षा के लिए दिनचर्या,ऋतुचर्या,सद्-वृत पालन तथा आहार-विहार विधान आदि से संबंधित निर्देश दिए थे। परन्तु आज के अर्थप्रधान युग में अधिक से अधिक धन प्राप्ति की लालसा में स्वास्थ्य संबंधी नियमों के पालन की ओर आम आदमी का ध्यान कम ही जाता है।खाने-पीने, सोने आदि का कोई निश्चित समय न होने के कारण स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है।
आज का औसत आदमी रात को देर से सोने के कारण सुबह देरी से उठता है और जल्दबाजी में शौचादि से निपट कर भोजन करता है। परिणामस्वरूप  ठीक से भोजन न चबाए जाने के कारण आमाशय और मँह के रस ठीक प्रकार से आहार में नहीं मिल पाते। जिस का परिणाम होता है - अजीर्ण,अम्लपित्त व कुपोषण से संबंधित बिमारियाँ। इसके अतिरिक्त बार-बार चाय,कॉफी,समोसे,बिस्किट, पकौड़ी आदि सेवन करने की प्रवृत्ति भी पाचन-तंत्र के लिए विशेष रूप  से हानिकारक है।
अध्ययनों से ज्ञात हुआ है कि भोजन के दो घण्टे बाद एक आईसक्रीम खाने से आमाशय के खाली होने का समय 4 घण्टे से बढ़कर 6 घण्टे हो जाता है। एक व्यक्ति को नाश्‍ते के डेढ़ घण्टे बाद मक्खन लगा डबलरोटी का आधा टुकड़ा प्रत्येक आधे घण्टे बाद दिया गया,तो नौ घण्टे बाद भी उसके आमाशय में सुबह के नाश्‍ते की चीजें बिना पची पाई गईं।एक अन्य व्यक्ति को दिन के तीनों भोजनों के बीच दो-दो चॉकलेट दी गई तो 13 घण्टे बाद भी उसके आमाशय में सुबह के नाश्‍ते  के आहार का आधा भाग पाया गया। उल्लेखनीय है कि यदि आमाशय उचित समय पर खाली न हो पाए तो अम्लपित्त,परिणामशूल,अन्नद्रवशूल आदि रोगों के होने की पूरी सम्भावना रहती है।
काश्यप ऋषि का कथन है कि अत्यधिक चिकनाई युक्त,रूखे व भारी पदार्थ सेवन करने से,रात में जागने और दिन में सोने से,प्राणी का खाया हुआ अन्न हजम नहीं हो पाता। मनुस्मृति  भी आहार संबंधी नियमों  के  महत्व  को  प्रतिपादित करते हुए कहती है  कि अप्रसन्नता और अनादरपूर्वक किया गया भोजन बल व ओज को नष्ट कर देता है।
गर्मागर्म चाय पीने का शौक फैशन का रूप लेता जा रहा है।पिछले दिनों लखनऊ के एक रिसर्च सैंटर के वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला है कि यदि चाय को अधिक देर तक उबाला जाए तो पत्ती से रिसने वाला सीसा शरीर  को हानि पहुँचा सकता है।इस रिसर्च सैंटर के प्रो. महरी हसन के अनुसार यदि चाय में सीसे की मात्रा अधिक हो और चाय ज्यादा पी जाए तो इसका मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव पड़ता है तथा पक्षाघात होने का भय बना रहता है।इन वैज्ञानिकों के अनुसार नींबू की चाय दूध की चाय से अधिक हानिकारक होती है, क्योंकि नींबू में मौजूद साइट्रिक एसिड से पत्ती से सीसा अधिक निकलता है।
प्रसिध्द कैंसर वैज्ञानिक प्रोफैसर सर रिचर्ड डाल के अनुसार यदि हम अपनी दैनिक खान-पान संबंधी आदतों को सुधार लें तो कैंसर से होने वाली 40 से 50 प्रतिशत तक मौतों को रोका जा सकता है।
ब्रिटेन के साउथैम्पटन अस्पताल के डॉ बी.मार्गेट के अनुसार शाकाहारी भोजन करने वाले लोगों में ब्लडप्रैशर, हृदय रोग, मधुमेह और ऑंतों के रोग कम होते हैं।पश्चिमी आस्ट्रेलिया विश्‍वविद्यालय के डॉ बी.के.आर्मस्ट्राँग के अनुसार माँस खाने वाली औरतों में शाकाहारी महिलाओं की अपेक्षा स्तन कैंसर कहीं अधिक होता है। अफ्रीका में एपिडेमिलॉजिकल अध्ययन करने वाले लंदन के डॉ पी. हरकिट ने सिध्द किया है कि जिन देशों में डबलरोटी,बिस्किट,चॉकलेट, केक,पेस्ट्रियाँ,आईसक्रीम आदि कम प्रयुक्त होते हैं, वहाँ ऑंतों के कैंसर के बहुत कम लोग षिकार होते हैं।ज्ञातव्य है कि अकेले अमेरिका में प्रतिवर्ष 70 हजार लोग ऑंतों के कैंसर से ग्रस्त होते हैं।
डॉ ए.सी.आइवीकी के अनुसार यदि चिकनाई को बार-बार गर्म किया जाए तो उसमें कैंसर उत्पादक तत्व पैदा हो जाते हैं। स्तन तथा डिम्ब ग्रन्थि के कैंसर को उत्पन्न करने में चिकनाई और खूब तली हुई चीजों का विशेष  योगदान रहता है। पशुजन्य चिकनाई का अत्यधिक सेवन नारी की जननेन्द्रिय में ऐसे परिवर्तन लाता है जो बाद में कैंसर को जन्म देते हैं। लखनऊ स्थित एनवायरनमैंट रिसर्च लैबोरेट्री में किए गए एक अध्ययन के अनुसार जमाए हुए वानस्पतिक तेलों और चॉकलेट में निकेल की मात्रा अधिक होती है, जो बच्चों के असमय बाल सफेद होने का मुख्य कारण है। इससे कैंसर भी हो सकता है। विश्‍व  स्वास्थ्य संगठन के अनुसार अधिक चाय पीने वाले लोगों को ऐसेफेगस के कैंसर का खतरा अधिक रहता है। अत्यधिक कॉफी भी पैप्टिक अल्सर, गठिया, उच्च रक्तचाप तथा नवजात शिशुओं में जन्मजात विकृति आदि का कारण मानी जाती है।
अकेले अमेरिका में प्रतिवर्ष दस हजार व्यक्ति मूत्राशय के कैंसर से मरते हैं। धूम्रपान, शराब और कॉफी इसके लिए मुख्य रूप  से उत्तरदायी हैं। जो व्यक्ति शराब और कॉफी का सेवन करता हो तथा साथ में धूम्रपान भी करता हो, तो स्थिति इतनी जटिल हो सकती है कि कल्पना भी नहीं की जा सकती। शोधकर्ताओं के अनुसार तीन प्याली से अधिक कॉफी रोज पीने वालों में कैंसर की सम्भावना सामान्य से तीन गुणा अधिक हो जाती है।
अपनी पुस्तक 'दि ट्रथ अबाउट कैंसर' में डॉ चार्ल्स एम. कैमेरान ने कहा है कि जिन देशों में मुख का कैंसर अधिक होता है, वहाँ शराब का प्रचलन अधिक है। विशेषकर खाली पेट शराब पीने से पाचन प्रणाली की श्‍लेष्मा झिल्ली में प्रदाह उत्पन्न हो जाती है, जो पुरानी सूजन में बदल कर कैंसर पैदा कर सकती है।

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जानिये पौष्टिक अश्‍वगंधा  के बारे में
महर्षि चरक ने शरीर की शक्ति को बढ़ाने वाले द्रव्यों 'दशेमानि बल्यानि भवन्ति' के अन्तर्गत अश्‍वगंधा  को भी शामिल किया है। इसके शक्तिवर्धक गुणों से प्रभावित होकर ही आचार्य सुश्रुत ने राजयक्ष्मा (T.B.) में इसके विपुल प्रयोग का परामर्श दिया है। आचार्य वाग्भट ने इसका प्रयोग रसायन के रूप  में कराया है। आचार्य प्रियव्रत ने अपने प्रसिध्द द्रव्यगुण विज्ञान में जिन सात रसायन द्रव्यों का वर्णन किया है,उनमें अश्‍वगंधा  भी एक है। अत: स्पष्ट है कि भारत में अश्‍वगंधा  की गणना शरीर को बलषाली बनाने वाले पदार्थों में सहस्त्राब्दियों से होती आई है।
इसका महत्व इसी बात से स्पष्ट हो जाता है कि आचार्यों ने अष्टवर्ग की बूटियों-काकोली तथा क्षीर काकोली के उपलब्ध न होने की स्थिति में उनके बदले अश्‍वगंधा  को प्रयोग करने का परामर्ष दिया है।
अश्‍वगंधा  को जनसाधारण में असगंध के नाम से जाना जाता है। वनस्पति विज्ञान के अनुसार इसका नाम विथैनिया सोम्निफेरा (Withania somnifera) है। क्योंकि इस पौधे की मूल समेत अंग-प्रत्यंग से घोड़े के मूत्र की सी गंध आती है, अत: इसे अश्‍वगंधा  कहा जाता है।
यद्यपि हिमाचल प्रदेश में यह प्राकृतिक रूप से भी उगती है,परन्तु अब तो व्यवसायिक रूप  से भी इसकी खेती होने लगी है। सोलन के आसपास यह पौधा बहुतायत में पाया जाता है। डॉ. यश्‍वंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विष्वविद्यालय नौणी ने भी इस दिशा में काफी कार्य किया है।
जो लोग ताकत बढ़ानेवाली पौष्टिक दवाओं की खोज में रहते हैं उनके लिए अश्‍वगंधा  वरदान सिध्द हो सकती है। बच्चों,नवयुवकों, वृध्दों,स्त्रियों सभी को इसका सेवन कर सकते हैं। आचार्य वाग्भट ने एक महत्वपूर्ण योग का वर्णन किया है, जिसे उनके बाद के अनेक आचार्यों ने अपनाया है। उनके अनुसार दूध,घी,तैल या जल के साथ पंद्रह दिनों तक अश्‍वगंधा  के सेवन से दुबला-पतला शरीर उसी प्रकार पुष्ट हो जाता है,जैसे वर्षा से छोटी- छोटी घास।
डॉ. घोषाल के अनुसार इसके चूर्ण से नींद ठीक आती है तथा कोई हानि भी नहीं होती।  महाराष्ट्र में बच्चों के सूखा रोग में इसका सेवन बिना चिकित्सक के परामर्श के गाँवों में  घर-घर में होता है। इस रोग में इसके प्रभाव को देखकर चकित रह जाना पड़ता है।
यदि आप नींद न आने से परेशान हैं तो वंगसेन का कहा प्रयोग आपके लिए लाभदायक हो सकता है। तीन ग्राम अश्‍वगंधा  की जड़ का चूर्ण बराबर  की मिश्री व घी मिलाकर रात को सोते समय लेकर ऊपर से दूध पीने से सुखपूर्वक नींद आने लगती है।
यूनानी मतानुसार यह तीसरे दर्जे में उष्ण एवं रूक्ष है। स्त्रियों के कमर दर्द और श्वेत प्रदर में आधा से एक तोला असगंध के चूर्ण को गाय के घी में सेंक कर उसमें पावभर दूध और मिसरी मिलाकर उबाल कर देना चाहिए।
अश्‍वगंधा  का पाक बनाने के लिए इसका 200 ग्राम चूर्ण लेकर उसमें 25 ग्राम पीपल का चूर्ण और 25 ग्राम कालीमिर्च मिलाकर घी में तल कर 800 ग्राम पुराने गुड़ की चासनी में डालकर गाढ़ा कर लेना चाहिए। यह 20-30 ग्राम प्रतिदिन दूध के साथ सेवन करना चाहिए। यह स्त्रियों के समस्त रोगों को दूर करके उनको नई शक्ति देता है।
प्रतिवर्ष आश्विन मास के शुक्लपक्ष तथा चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में यदि वयोवृध्द लोग इसका सेवन करें तो उनके सारे विकार दूर हो जाते हैं। बालकों को 500 मि.ग्रा. की मात्रा में दूध के साथ देने से एक महीने में उनकी कमजोरी दूर हो जाती है।
अश्‍वगंधा  का प्रयोग शीतपित्त,सूजन, स्वप्नदोष,कंठमाला, उदर-रोग,खाँसी,पीलिया तथा आमवात में भी होता है।