वृक्षारोपयितुवर्वृक्षाः परलोके पुत्रा भवन्ति।
वृक्षप्रदो वृक्षप्रसूनै देवाहे प्रीणयितफलैश्चतिथीन् छाययाचाभ्यागतान् देवेवषत्युदकेन पितृन्।
पुष्पप्रदानेन श्रीमान् भवति। कूपारामतड़ागेषु देवताततनेषु च।
पुनःसंस्कारकर्त्ता च लभते मौलिकं फलम् ।।
-विष्णु स्मृति
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A mango tree |
अर्थात्
व्यक्ति जिन वृक्षों को लगाता है, वे वृक्ष परलोक में उसके पुत्र बनकर
उसकी सहायता करते हैं। जो वृक्षों का दान करता है, वह अनेक फूलों के द्वारा
देवताओं को प्रसन्न करता है। वृक्षों के फलों से अतिथि, छाया से अभ्यागत
और जल से पितर प्रसन्न होते हैं। फूलों का दान देने से समृद्धि प्राप्त
होती है। जो व्यक्ति कुँए, बाग, तालाब और देवस्थान का जीर्णोद्धार करता
है, उसे वही फल मिलता है जो इनका नवनिर्माण करने से प्राप्त होता है।
नागछतरी (सतुआ) Trillium govanianum
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Trillium govanianum |
हिमाचल में पैदा होने वाली बेशकीमती जड़ी बूटी
नागछतरी का वैज्ञानिक नाम ट्राईलियम गोवानियनम है। इसे स्थानीय लोग सतुआ कहते
हैं। चीन इस जड़ी बूटी से शक्तिवर्धक और सेक्स हार्मोन्स की दवाइयां बना रहा है।
चीन में नागछतरी की कीमत 20 हजार रुपए किलोग्राम बताई जा रही है। वहाँ
इस जड़ी बूटी से बनी दवाइयों का व्यवसायिक प्रयोग शुरू हो चुका है। हिमाचल में दो
हजार से चार हजार मीटर की ऊंचाई पर पैदा होने वाली इस जड़ी-बूटी की जड़ों में
मौजूद रसायन से दवाइयां बनती हैं। रोहड़ू
से डोडरा कवार की ओर जाने के लिये जैसे ही
लड़ोट से आगे प्रवेश करते हैं, हर मिलने वाले की जुबान पर
सतुआ का नाम सुनाई देता है। लगभग 4000 मीटर की ऊँचाई लाँघ कर जैसे ही चांशिल
चांशिल के परे कदम रखते हैं अष्टवर्ग की
बूटियों के साथ-साथ उगा हुआ सतुआ हर जगह दिखाई देता है। कालापानी जंगल में इसकी
हरी भरी प्राकृतिक फसल लहला रही है।
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Nagchhatri at Kala Pani Forest near Dodra |
वहाँ स्थानीय जाख देवता ने एक सराहनीय फैसला
लिया है कि कोई भी ग्रामीण उसके जंगल से सतुआ नहीं उखाड़ेगा। इसे उखाड़ने की सशर्त
अनुमति केवल अक्तूबर के बाद होगी। यह एक वैज्ञानिक फैसला है। यदि ऐसा होता है तो
इसके बीज अगले मौसम के लिये झड़ जाएँगे और इसका बजूद बचा रहेगा।
एक बात और, नागछतरी का दोहन करने वालों को तस्कर कहना
सचमुच बहुत खलता है। ग्रामीणों को तो यह गाली के समान लगता है। इन दुर्गम क्षेत्रों में बसने वालों की आय का
साधन आखिर क्या है? ये इन्ही जंगलों पर
निर्भर है। ये तस्कर नहीं हैं। मैंने कुल्लू से लेकर शिमला तक इन ग्रामीणों के
चेहरे पर आई खुशहाली की चमक देखी है। जिसके पीछे केवल नागछतरी नाम का यह छोटा सा
पौधा है। वे इसे दैवी वरदान मानते हैं। ऐसे में आवश्यकता इसके दोहन को रोकने की
नहीं, सही वक्त पर दोहन की है। वरना लोगों के प्राकृतिक
संसाधनों पर नियंत्रण की कोशिश ने जैसे नकसली आंदोलन के लिये भूमि तैयार की थी, इनका क्रोध भी फूट
सकता है।
The Crop of Maize is flourishing in my farm at village paplova-Dubloo (near Chail) these days
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Maize Field |
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Cucumber in maize field |
Chail is an all weather tourist destination. Below is a picture of a Resort in the way towards Chail from Kandaghat, INDIA
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SJVNL Circuit House at Jhakri, Near Rampur Bushahr (H.P.) |
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In the lawn of historical Palace Hotel, Chail, Near Shimla/Solan (H.P.) |
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A view from Baro Village, Near Nichar, Kinnaur (H.P.) |
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Cherries are attracting everyone these days at Narkanda, Near Shimla (H.P.) |
And Now about Solan :
Solan (Himachal Pradesh) has a rich cultural heritage. It's natural beauty is fascinating. These pictures will explain it without any other comment:-
Pix.1 : Traditional Naati Dance by Girls School Solan Students
Pix 2: Mehandi Competition
Pix 3: Enjoying the movements of leisure
Pix 4 : Dancing Girls at Solan
Pix 5: Himachali Folk Dance