चायल की स्मृतियाँ
चायल बस स्टैंड |
ऐतिहासिक चायल पैलेस |
विश्व प्रसिद्ध पर्यटक स्थल चायल हिमाचल प्रदेश के सोलन जनपद में स्थित है. यहां का नैसर्गिक सौंदर्य किसी को भी मोहित करने की शक्ति रखता है।
चायल विश्व के सबसे ऊँचाई पर स्थित क्रिकेट मैदान के लिये जाना जाता है। अंग्रेजों ने गोरखों के खिलाफ लड़ाई में साथ देने के लिए महाराज पटियाला को चायल उपहार के तौर पर दिया था।
यह मैदान महाराजा पटियाला ने नहीं बनाया था, बल्कि इसे केवल संवारा था। इस बात के साक्ष्य मौजूद हैं कि 1893 में ही विश्व का सबसे ऊंचा क्रिकेट ग्राउंड यहां बन गया था। जो कि पहले एक चरागाह के रूप में प्राकृतिक तौर पर मौजूद था।
सिद्ध बाबा मंदिर के पास |
सिद्ध बाबा मंदिर चायल |
शांति के क्षण |
आज इस मैदान की दशा देखकर आँखों में आँसू आ जाते हैं। मिल्ट्री स्कूल के नियंत्रण में होने के कारण इसकी हालत सचमुच दयनीय है। विकास नाम की तो कोई चीज ही नहीं है।
चायल से एक विहंगम दृश्य |
ऐतिहासिक गुरुद्वारा साहिब चायल |
ऐतिहासिक बान (ओक) वृक्ष, जिस पर बने मचान पर बैठकर महाराजा कभी पहाड़ों का सौंदर्य निहारते थे, आज सूखी लकड़ी बन चुका है। मुझे याद है कि मैं बचपन में अपने पिता जी के साथ इस वृक्ष की मचान पर बैठ चुका हूँ।
आज भी चायल का चप्पा चप्पा पटियाला के महाराजा भूपिंद्र सिंह की कहानी बयान करता है। उन्होंने वर्ष 1900 में राजगद्दी संभाली और 38 साल तक राजपाट किया। उन्होंने ऑनरेरी लेफ्टीनेंट कर्नल के तौर पर प्रथम विश्व युद्ध में भाग लिया था।
उन्होंने लीग ऑफ नेशंज में 1925 में भारत का प्रतिनिधित्व भी किया था। महाराजा क्रिकेट के शौकीन थे। वर्ष 1911 में इंग्लैंड दौरे पर भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान भी वही थे।
यह भी कहा जाता है कि महाराजा पटियाला शिमला स्थित वायसराय की बेटी पर इस कदर मोहित थे कि अपने प्यार को पाने के लिए ऐसा दुस्साहस दिखाया कि उसे वहां स्कैंडल प्वाइंट से उठा लिया और चायल ले आये। लेकिन ऐसी किसी घटना का ऐतिहासिक प्रमाण नहीं मिलता है कि भूपिंद्र सिंह ने वायसराय की बेटी को स्कैंडल प्वाइंट से उठाने का दुस्साहस किया था।
यहां पर सिद्ध बाबा मंदिर, काली टिब्बा, खडीवन, दोची, फनेवठी का चूड़धार प्वाइंट, ठंडी सड़क, गलू आदि देखने लायक स्थान हैं. यहां 1907 में बना एक अनुपम गुरुद्वारा भी है.